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"व्यक्ति जब अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों के स्रोत क

"व्यक्ति जब अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों के स्रोत को जान लेता है तो वह भी देवतुल्य बन जाता है। विश्वास के जाग्रत होते ही आत्मा में छिपी हुई शक्तियां प्रस्फुटित हो उठती हैं। हमारे अंदर के श्रेष्ठ विचार महत्वपूर्ण कार्य के रूप में परिणत हो जाते हैं। इसके विपरीत अपने प्रति अविश्वास से तो शक्ति के स्रोत सूख जाते हैं और लोग भंडार के होते हुए भी दीन तथा दरिद्र ही बने रहते हैं।"
     
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"व्यक्ति जब अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों के स्रोत को जान लेता है तो वह भी देवतुल्य बन जाता है। विश्वास के जाग्रत होते ही आत्मा में छिपी हुई शक्तियां प्रस्फुटित हो उठती हैं। हमारे अंदर के श्रेष्ठ विचार महत्वपूर्ण कार्य के रूप में परिणत हो जाते हैं। इसके विपरीत अपने प्रति अविश्वास से तो शक्ति के स्रोत सूख जाते हैं और लोग भंडार के होते हुए भी दीन तथा दरिद्र ही बने रहते हैं।"
     
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