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पंख खोल आलस्य त्यागकर पंक्षी ढ़ूढ़ ठिकाना। तुझे दू

पंख खोल आलस्य त्यागकर पंक्षी ढ़ूढ़ ठिकाना।
तुझे दूर तक जाना,   बहुत दूर तक जाना।।
सोता रहा पड़ा तो ,अकर्मण्य  वोला जायेगा।
कायरता में तेरा पौरुष तब तोला जायेगा।
तुझे स्वयं आगे बढ़कर,इस दुनियां से लड़ना है।
अपने श्रम की चावी से इतिहास नया गढ़ना है।
आगे बढ़ कुछ कठिन नहीं है,जग में मंजिल पाना।
तुझे दूर तक जाना,बहुत दूर तक जाना।
जो भी पथ पर बढ़ा,सदा बाधायें आड़े आयीं।
चलता रहा निरंतर,पर विचलित न उसे कर पायीं।
गिरते उठते, उठ उठ गिरते, मंजिल पा जाते हैं।
जग के मानचित्र पर ऐसे प्राणी छा जाते हैं।
पग पखारता सिंधु, उन्ही को झुकता सदा जमाना।
तुझे दूर तक जाना, बहुत दूर तक जाना।

©viyogi manav Dr Arun Pratap Singh Bhadauria Anupriya Das Anupriya Das Anupriya Das Anupriya Das
पंख खोल आलस्य त्यागकर पंक्षी ढ़ूढ़ ठिकाना।
तुझे दूर तक जाना,   बहुत दूर तक जाना।।
सोता रहा पड़ा तो ,अकर्मण्य  वोला जायेगा।
कायरता में तेरा पौरुष तब तोला जायेगा।
तुझे स्वयं आगे बढ़कर,इस दुनियां से लड़ना है।
अपने श्रम की चावी से इतिहास नया गढ़ना है।
आगे बढ़ कुछ कठिन नहीं है,जग में मंजिल पाना।
तुझे दूर तक जाना,बहुत दूर तक जाना।
जो भी पथ पर बढ़ा,सदा बाधायें आड़े आयीं।
चलता रहा निरंतर,पर विचलित न उसे कर पायीं।
गिरते उठते, उठ उठ गिरते, मंजिल पा जाते हैं।
जग के मानचित्र पर ऐसे प्राणी छा जाते हैं।
पग पखारता सिंधु, उन्ही को झुकता सदा जमाना।
तुझे दूर तक जाना, बहुत दूर तक जाना।

©viyogi manav Dr Arun Pratap Singh Bhadauria Anupriya Das Anupriya Das Anupriya Das Anupriya Das
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