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सुबह की 6 बज चुके थी। सभी वृद्ध कसरत के लिए गार्डन

 सुबह की 6 बज चुके थी। सभी वृद्ध कसरत के लिए गार्डन में आ चुके थे। सुबह की महक भरी बयार और सजर की ठंडक में कोई बिना बात के ठहाके लगा रहा था तो कोई तीन बार चुटकियां बजा कर ताली मार रहा था।
इन सब में अब भी प्रभा की नज़रे किसी की तलाश में गार्डन का हर एक कोना छान रही थी। कभी चश्में को नाक में चढ़ा कर तो उसे सर पर पहनकर
तभी प्रभा की नज़र एक बूढ़े आदमी पर पड़ी प्रभा ने झट्ट से चश्मा आँखों में लगाया और कुछ देर के लिए स्तब्ध खड़ी रह गयी। उसके कानों में सारी आवाजे जाना बंद हो गयी, मौसम अचानक बदला-बदला लगने लगा। फोन के पोर्ट्रेट सिस्टम की तरह बाकि सब धुंधला हो गया और सिर्फ वो बूढा आदमी दिख रहा था। प्रभा ऐसी ही बेसुध सी उस सज्जन की ओर कदम बढ़ाने लगी। शिवानन्द.....
आदमी प्रभा की आवाज सुनकर तुरंत मुड़ा
"पहचाना..?" "प्रभा..….. बूढ़े आदमी के कांपते होंठो से उसका नाम निकला
"तुम्हे नाम याद है? अब भी.. "जिस नाम के लिए यहाँ हूँ उस नाम को भूल जाऊ?" ये सुनते ही प्रभा के दिल में जैसे लाखो सूंयो का वार एक साथ हुआ हो। बीते दिनों के स्मृतियां की नांव इस बूढ़े याद्दाश्त के समंदर में हिचकोले खाने लगी। वृद्ध के बगल में थोड़ी दूरी बना कर बैठ गई। "कितने दिन हुए?"
"दिन नहीं साल, दो साल हो गए प्रभा"
जिस तरह 39 साल पहले तुम इंतज़ार कराया करती थी ठीक उसी तरह, मगर दो साल कुछ लंबा इंतज़ार हो गया, प्रभा....
 सुबह की 6 बज चुके थी। सभी वृद्ध कसरत के लिए गार्डन में आ चुके थे। सुबह की महक भरी बयार और सजर की ठंडक में कोई बिना बात के ठहाके लगा रहा था तो कोई तीन बार चुटकियां बजा कर ताली मार रहा था।
इन सब में अब भी प्रभा की नज़रे किसी की तलाश में गार्डन का हर एक कोना छान रही थी। कभी चश्में को नाक में चढ़ा कर तो उसे सर पर पहनकर
तभी प्रभा की नज़र एक बूढ़े आदमी पर पड़ी प्रभा ने झट्ट से चश्मा आँखों में लगाया और कुछ देर के लिए स्तब्ध खड़ी रह गयी। उसके कानों में सारी आवाजे जाना बंद हो गयी, मौसम अचानक बदला-बदला लगने लगा। फोन के पोर्ट्रेट सिस्टम की तरह बाकि सब धुंधला हो गया और सिर्फ वो बूढा आदमी दिख रहा था। प्रभा ऐसी ही बेसुध सी उस सज्जन की ओर कदम बढ़ाने लगी। शिवानन्द.....
आदमी प्रभा की आवाज सुनकर तुरंत मुड़ा
"पहचाना..?" "प्रभा..….. बूढ़े आदमी के कांपते होंठो से उसका नाम निकला
"तुम्हे नाम याद है? अब भी.. "जिस नाम के लिए यहाँ हूँ उस नाम को भूल जाऊ?" ये सुनते ही प्रभा के दिल में जैसे लाखो सूंयो का वार एक साथ हुआ हो। बीते दिनों के स्मृतियां की नांव इस बूढ़े याद्दाश्त के समंदर में हिचकोले खाने लगी। वृद्ध के बगल में थोड़ी दूरी बना कर बैठ गई। "कितने दिन हुए?"
"दिन नहीं साल, दो साल हो गए प्रभा"
जिस तरह 39 साल पहले तुम इंतज़ार कराया करती थी ठीक उसी तरह, मगर दो साल कुछ लंबा इंतज़ार हो गया, प्रभा....