White ओ, मौन, तपस्या-लीन यती! पल भर को तो कर दृगुन्मेष! रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल है तड़प रहा पद पर स्वदेश। सुखसिंधु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना की अमिय-धार जिस पुण्यभूमि की ओर बही तेरी विगलित करुणा उदार, जिसके द्वारों पर खड़ा क्रांत सीमापति! तूने की पुकार, ‘पद-दलित इसे करना पीछे पहले ले मेरा सिर उतार।’ ©RJ VAIRAGYA #ramdharisinghdinkar #rjharshsharma