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शीर्षक-तुम्हे क्या पड़ी है।। तुम्हे क्या पड़ी है, स

शीर्षक-तुम्हे क्या पड़ी है।।

तुम्हे क्या पड़ी है, सबका साथ निभाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, अकेले काम निपटाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबका बोझ उठाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सारे रिस्ते निभाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबके दुःख में जाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सारा दिन घर में बिताने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, साड़ी से सिर छुपाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, रोज़ रोज़ एक ही चीज़ खाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबका प्यार पाने की,

तुम बेटी नहीं बहु हो उस घर की,
तुम्हे क्या पड़ी है, उनके घर को सजाने की।।

कहकर ये सारी बातें, ना जाने कितनी माँओ ने,
अपनी लाडली बेटी का घर तोड़ दिया,
भर देती थी खुशियों से, जिस घर को बहुएं,
अब उसी घर को उन्होंने दुखो से भर दिया।।

-विनीत जालुका(Soch) शीर्षक-तुम्हे क्या पड़ी है।।

तुम्हे क्या पड़ी है, सबका साथ निभाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, अकेले काम निपटाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबका बोझ उठाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सारे रिस्ते निभाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबके दुःख में जाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सारा दिन घर में बिताने की,
शीर्षक-तुम्हे क्या पड़ी है।।

तुम्हे क्या पड़ी है, सबका साथ निभाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, अकेले काम निपटाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबका बोझ उठाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सारे रिस्ते निभाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबके दुःख में जाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सारा दिन घर में बिताने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, साड़ी से सिर छुपाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, रोज़ रोज़ एक ही चीज़ खाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबका प्यार पाने की,

तुम बेटी नहीं बहु हो उस घर की,
तुम्हे क्या पड़ी है, उनके घर को सजाने की।।

कहकर ये सारी बातें, ना जाने कितनी माँओ ने,
अपनी लाडली बेटी का घर तोड़ दिया,
भर देती थी खुशियों से, जिस घर को बहुएं,
अब उसी घर को उन्होंने दुखो से भर दिया।।

-विनीत जालुका(Soch) शीर्षक-तुम्हे क्या पड़ी है।।

तुम्हे क्या पड़ी है, सबका साथ निभाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, अकेले काम निपटाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबका बोझ उठाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सारे रिस्ते निभाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सबके दुःख में जाने की,
तुम्हे क्या पड़ी है, सारा दिन घर में बिताने की,