वह एक गरीब परिवार था.... दुनिया को वह खुश तो नजर आता था, पर अंदर ही अंदर सिर्फ वही खुद को समझ पाता था। परिवार के लिए दो वक्त की रोटी तो ज़रूर कमाता था, पर इसके लिए वह इस कड़ी धूप से भी लड़ जाता था। पैरों में जख्म,दिलो में दर्द लिए, वह हर कामों को करता जाता था, फिर भी वह उस दो कौड़ी से, अपने परिवार को खुश रखना चाहता था। सुबह निकले कामों पर वो, शाम को हारे-थके घर आता था, फिर वही पैरों में जख्म..दिलों में दर्द, किसी को नजर नही आता था। दो पैसों को कमाने के लिए, वह पूरे दिन भूखे भी रह जाता था, वह उस गरीबी में भी, परिवार के सपनों को पूरा करना चाहता था। जब शाम को लौटे घर, वही मुस्कुराहट चेहरे पे दिखता था, वह एक गरीब था, फिर भी उसे कोई समझ नही पाता था। #7thpoem #poorpeople #prashant_kumar #pk_poetry