मेरे खराब वख्त को वो मेरा मुकद्दर समझ बैठे। कड़की थि बस बिजली भर वो तूफान समझ बैठे। साथ बीच मजधार में वो हमारा छोड़ बैठे। दिल उनपे ही हारे थे हम, वो हमे पत्थर समझ बैठे। चाहा था कूछ पल का साथ, वो सपना समझ बैठे। मेरे खराब वख्त को वो मेरा मुकद्दर समाज बैठे, चिंतन शास्त्री #shabdbindu #poem #thought