कहानी बेचारी गिलहरी एक गिलहरी हालात से टूटी थी उसकी हर शाम रो रो के फूटी थी एक पेड़ पर उसका आशियाना था जो काफी पुराना था जंगल में मंगल था हरे भरे पेड़ों से उसकी हर रोज मुलाकात होती थी बरसात तो साहब वहां रोज होती थी कुदरत का कहर देखिए अपने बच्चों के संग गिलहरी घूमने क्या निकली कि किसी आसमां में बिजली चमकने लगी बादलों से बूंदें टपकने लगी धरा पर पानी इतना बिखर गया हर खेत जंगल तालाब बन गया गिलहरी की उम्मीद में भी सैलाब बन गया अपने बच्चों की चिंता होने लगी मन ही मन में रोने लगी हे कुदरत तूने क्या कर दिया धरा पर पानी रोज भरता है आज आंखों में भी पानी भर दिया लोग कहते हैं कि तू पत्थर का है आज तूने यह भी साबित कर दिया तभी एक बचपन की एक हकीकत सामने आई हमने किसी की मदद की थी वो रंग लाई एक बड़ा सा पेड़ सैलाब में बहता आ रहा था गिलहरी तुम चिंता मत करो यह कहता आ रहा था उसे देख गिलहरी की उम्मीद जागी वो एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर अपने बच्चों को लेकर भागी अपने बच्चो को सैलाब से पार कर गई खुद पानी की धार में बह गई दोस्तो यह कहानी कैसी लगी हमें सब की मदद करनी चाहिए बिहार में आई बाढ़ से जो मुसीबत लोगों पर आई है उसके लिए हमें उनकी मदद करनी चाहिए बेचारे गिलहरी