की ना किजिए इश्क़-ए-इबादत इस कदर शिद्दत से। (2) गुज़र रहा है सफ़र तन्हा मेरा इक मुद्दत से। (2) ना देखिए हसीन खाब उम्मीद-ए-वफाओं के! (2) की हम चश्म है जनाब! (2) की हम चश्म है जनाब उन इल्तज़ाओं पर जफ़ाओं के । कवि-रितिक #चश्म