रात आई है सुबह भी होंगी आधी रात में सुबह कौन ढूंढे ज़िंदगी है जी खोल कर जीयो रोज रोज क्यों जीने की वज़ह कौन ढूंढे अब कौन रोज रोज ख़ुदा ढूंढे जिसको ना मिले वहीं ढूंढे ©kishan mahant #ढूंढे