मैं ही गिरिधर मैं ही गोपाल कान्हा मुरारी.. मैं ही माखन यशोदाका मैंनेही तो घट उतारी.. मैं ही कण कण मैं ही सब में बसता जीवन.. मेरे कहने को लाखों रूप बस राधिकाही मुझें अनुरूप.. मैं ही गोपियोंका चित्तचोर मैं ही शरारती बारिशमें धूप.. मुरलीधर मैं ही..मैं ही शांत औऱ हूँ मैं ही विक्राळ स्वरूप.. जो सकंटको सँहारे जो दीन बंधोको सवारे मैं ही हूँ पूर्णरूप.. रास क्रीड़ा हैं मेरी निराली चंचल शीतल मधुर हैं वाणी.. पर्वतीय मैं ही.. मैं ही अंश स्वरूप स्थिर निश्छल गौप्रिय मुख.. मैं सारथी मैं वस्त्रदाता मैं हर हरमें.. मुझमें बसतें सारे सुख.. तीनों लोक उजागर दाता त्राता हूँ मैं ही तो सांवला शाम श्रीमुख.. ©मी शब्दसखा कन्हैया #kanha #jayshrikrishna #gopal #mohan #murlidhar #giridhar #jagdish #hindi #poetry #writer #nojotohindi