पहली मुलाकात... और फिर अंधेरे ने डर कर आँखें मीच ली... (शेष अनुशीर्षक में....) एकदम से लाइट चली गयी है... एकदम से ही सब जगह एक नयी कायनात सी बन गयी... सब जगह घुप्प अँधेरा...सुदूर तक फैला हुआ Covid 19 की बातें सुनाता हुआ अँधेरा...Sanitizers की महक से महकता अँधेरा...चिकित्सालयों के अंदर से बाहर की भीड़ को चीर कर आती हुई चीखों से कानों को दहलाता अँधेरा...कहीं से कोई एम्बुलेंस का सायरन न सुनाई दे जाए, दिल के इस डर को महसूस कराता अँधेरा...श्मशान से निकले धुंए के साथ जलती बुझती आशाओं और मानवता को नासिकाओं तक पहुंचाता अँधेरा... बस कुछ लोगों के मोबाइल हैं जो जल कर कुछ रौशनी का आभास करा रहे हैं इस समय छत पर और इस अंधेरे से लड़ने में लगे हुए से लग रहे हैं... और आसमां में मुझे दिख रहे हैं असंख्य तारे और एक चाँद...चाँद उसकी बिंदिया जैसा...छोटी सी बिंदिया जो उसकी बड़ी बड़ी आँखों के ऊपर सजी eyebrows के बीच में होती है...चाँद बिलकुल वैसा... मैं सोचने लगा की इन तीनो में से किस से बात करूं, तारों से या चाँद से या इस अँधेरे से...फिर मुझे लगा की ना जाने कितने प्रेम में पागल अपनी अपनी प्रेमिकाओं को चाँद तारे लाने की बातें कर बेवकूफ बना रहे होंगे...तो ये चाँद तारे उनके लिए कम ना पड़ जाए तो मैंने अँधेरे से ही बात करना उचित समझा...