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अगर अपनी चमड़ी की जूती बनाकर भी तू पहना दे तब भी उस

अगर अपनी चमड़ी की जूती बनाकर भी तू पहना दे तब भी उसका हक़ अदा नही कर सकता,
हज़ार महबूब की मोहब्बत मिलाकर भी कोई उस जैसी वफ़ा नही कर सकता।
ये ज़मीन,ये आसमान,ये सारी क़ायनात थर्रा उठे जिसकी इक आवाज़ से,
ऐसा योद्धा माँ के सिवा कोई औऱ नही हो सकता।।

©Azhar Khan माँ का शेर पुत्र
अगर अपनी चमड़ी की जूती बनाकर भी तू पहना दे तब भी उसका हक़ अदा नही कर सकता,
हज़ार महबूब की मोहब्बत मिलाकर भी कोई उस जैसी वफ़ा नही कर सकता।
ये ज़मीन,ये आसमान,ये सारी क़ायनात थर्रा उठे जिसकी इक आवाज़ से,
ऐसा योद्धा माँ के सिवा कोई औऱ नही हो सकता।।

©Azhar Khan माँ का शेर पुत्र