कई रोज़ शामे आई और राते भी ढलती गई सुबह फिर से सांस भर कर दबे पांव चलती गई वो ठंडी सर्द बाहे भी लहरों से लड़ती गई वो गर्मजोश निगाहें भी दिल ही दिल में जलती गई सिस्काती मुसकाती वो पहर पहर चढ़ती गई बदन पे छाले थे फिर भी वो हर ग़म में हस्ती गई बागी था एक रागी था में अनुपम और अनुरागी था देख के उसकी बेबाकी आंखें मेरी भरती गई उसकी भुरी आंखो से मेरी परछाई पकड़ी गई थोड़ा रुक के फिर से चल दी वैसे ही चलती गई वो सहेलाना जुल्फों का उसका लहेरा के चलना था क्या? में भौचक्का सा हो गया, फिर शर्माना बहेलाना क्या? मुख का मधुबन लौट आया, काया भी सुंदर हो गई वो मदुराई कि राधा थी, कान्हा कि निंदर खो गई किसना ने ख़ुद को रोका भी, अंतरमन को टोका भी रानी ने जाना हाल ए दिल, अपनी कसमो को थोपा भी वो क्या मानत कन्हाई है; राधे संग प्रीत लगाई है नटखट नागर मथुरा में और बरसाने में हरजाई है बरसाने कि राधा रानी मथुरा कि रुकमणी जाए कहा कन्हाई अब दुविधा थी बड़ी घणी राधा ने श्याम पुकारा तो मथुरा मे स्वामी बोले है बृज से मथुरा का अंतर वो यादों से ही तोले है #कृष्णलीला #कृष्ण #कुछनयाकुछपुराना #yqdidi #yqdidihindi #dharmuvach #dharmdesai #bestyqhindiquotes