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सर कफन बाँध चल प़डा था, ख्वाहिशों को दिल में दबा

सर कफन बाँध चल प़डा था, 
ख्वाहिशों को दिल में दबा चल पड़ा था।
दाव पर लगा दी कीमत भरी जिंदगी, 
ख्वाब किसी का सजाने चल पड़ा था। ।
वक़्त की नजाकत देखो, 
हर पल छलता गया मैं, 
रिश्तों में  किनारे फिसलता गया मैं,,
शिकस्त मिलती गई मेरे हौसलों को, 
ईर्ष्या, द्वेष बस निगलता गया मैं। ।
written by संतोष वर्मा azamgarh वाले
खुद की जुबानी

©Santosh Verma
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