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यूँ नज़रों से छुपते छुपाते कहाँ तक जा पाओगी, इस न

यूँ नज़रों से छुपते छुपाते कहाँ तक जा पाओगी, 
इस नूर से चेहरे को तुम कब तक छुपा पाओगी, 
माना की गुलाबों से भी कोमल है चेहरा तुम्हारा, 
इन फूलों के पीछे तुम ज्यादा देर छुप न पाओगी






_सुधांशु_

©Sudhanshu Bahrod
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