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मैंने मन की डायरी में, लिख दी पहले प्रीत। पन्ने ख

 मैंने मन की डायरी में, लिख दी पहले प्रीत।
पन्ने खाली रह गए, मिला ना ऐसा मीत।

कुछ सपने जो अनकहे, लिखे मौन में भर के,
ना ही वे लय बद्ध किए, ना दिया कभी संगीत।

ओट किया है दर्द; खुशी के, सबके आगे हंस दी
गज़ल शिसकती ही रही, जग ने देखे गीत।

चिंता है भविष्य की लेकिन, वर्तमान में जीते,
कोई पूछे क्यूं भला ! वो किस्सा हुआ अतीत।

कहने को सब अपने हैं पर, किसे सुनाएं पीर,
सबके दुःख हमसे बड़े, होता यही प्रतीत।

अब खुद से है दोस्ती, खुद से करती बात।
लिखती मन की डायरी में, दुनियां की नई रीत।

©Kalpana Tomar
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