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किसी झूठ और भरम मे, फिर से तू खो ना जाना.. मुश्किल

किसी झूठ और भरम मे, फिर से तू खो ना जाना..
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..
काता जो हमने चरखा, तो बस रुई रुई थी..
झेली जो हमने गोली, स्वाधीनता मिली थी..
गोली का और रुई का, तू फर्क ना भुलाना..
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..
आजाद जो हुए तो, फिर खाया हमने धोखा..
सिंह भेष मे गीदड़ को, सत्ता का दिया मौका..
बहरुपिये गीदड़ को, अब जा के है पहचाना..
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..
वो बोले एक ही है ,भगवन कहो या मौला..
फिर बांट के वतन को, तलवार का मुंह खोला..
वो खून जो बहा था, वो खून ना बिसराना..
सत्ता वरण की खातिर, जाति मे हमको बांटा..
फिर नाम पे प्रगति के, धर्म और कर्म से काटा..
बरसों मे अब मिटा है, मिथ्या का ताना-बाना..
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..।।
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..।।

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳*अखिल खन्ना* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

©Akkhil #IndiaLoveNojoto #अखिल
किसी झूठ और भरम मे, फिर से तू खो ना जाना..
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..
काता जो हमने चरखा, तो बस रुई रुई थी..
झेली जो हमने गोली, स्वाधीनता मिली थी..
गोली का और रुई का, तू फर्क ना भुलाना..
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..
आजाद जो हुए तो, फिर खाया हमने धोखा..
सिंह भेष मे गीदड़ को, सत्ता का दिया मौका..
बहरुपिये गीदड़ को, अब जा के है पहचाना..
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..
वो बोले एक ही है ,भगवन कहो या मौला..
फिर बांट के वतन को, तलवार का मुंह खोला..
वो खून जो बहा था, वो खून ना बिसराना..
सत्ता वरण की खातिर, जाति मे हमको बांटा..
फिर नाम पे प्रगति के, धर्म और कर्म से काटा..
बरसों मे अब मिटा है, मिथ्या का ताना-बाना..
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..।।
मुश्किल से जगाया है, मेरे देश सो ना जाना..।।

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳*अखिल खन्ना* 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

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