क्षितिज पर देखकर सूरज नजारा खूब लगता है खड़ा जब सर के ऊपर हो तो खारा खूब लगता है वही तेरी नजाकत थी की जब तक फोन में ही थी अभी जब सामने हो तो क्यूं घेरा लाल बनता है ये आंखे लपलपा जाती है जैसे देखकर दुपहर कभी अच्छी भी लगती हो जो जाड़ा खूब लगता है बुराई ढूंढ लेना ही नही कविता का मकसद हो कभी उत्तर भी हो मुंह में तो प्यारा खूब लगता है ©दीपेश #tanha #keepdistance