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क्षितिज पर देखकर सूरज नजारा खूब लगता है खड़ा जब सर

क्षितिज पर देखकर सूरज
नजारा खूब लगता है
खड़ा जब सर के ऊपर हो
तो खारा खूब लगता है
वही तेरी नजाकत थी
की जब तक फोन में ही थी
अभी जब सामने हो तो
क्यूं घेरा लाल बनता है
ये आंखे लपलपा जाती है
जैसे देखकर दुपहर
कभी अच्छी भी लगती हो
जो जाड़ा खूब लगता है
बुराई ढूंढ लेना ही नही
कविता का मकसद हो
कभी उत्तर भी हो मुंह में
तो प्यारा खूब लगता है

©दीपेश #tanha #keepdistance
क्षितिज पर देखकर सूरज
नजारा खूब लगता है
खड़ा जब सर के ऊपर हो
तो खारा खूब लगता है
वही तेरी नजाकत थी
की जब तक फोन में ही थी
अभी जब सामने हो तो
क्यूं घेरा लाल बनता है
ये आंखे लपलपा जाती है
जैसे देखकर दुपहर
कभी अच्छी भी लगती हो
जो जाड़ा खूब लगता है
बुराई ढूंढ लेना ही नही
कविता का मकसद हो
कभी उत्तर भी हो मुंह में
तो प्यारा खूब लगता है

©दीपेश #tanha #keepdistance