Nojoto: Largest Storytelling Platform

गला तड़क रहा था प्यास से, मानो मौत से बस चंद दूरी

गला तड़क रहा था प्यास से, मानो मौत से बस चंद दूरी का फासला, बैचेनी की पराकाष्ठा इस मुकाम पर थी कि बस एक नन्ही सी बूंँद भी पानी की कोई डाल दे तो कंठ तर हो जाए और फिर कोई भय ना हो, 
मृत्यु का भी नहीं..
(full in caption) गला तड़क रहा था प्यास से, मानो मौत से बस चंद दूरी का फासला, बैचेनी की पराकाष्ठा इस मुकाम पर थी कि बस एक नन्ही सी बूंँद भी पानी की कोई डाल दे तो कंठ तर हो जाए फिर कोई भय ना हो, मृत्यु का भी नहीं, घबराहट से एकाएक नींद झटके से खुल गई! सपना था, पर प्यास सच थी, पूरा कुर्ता पसीने से भीग पीठ से चिपक गया था। दिसंबर की सर्दी में इतना पसीना। अंधेरे में हाथ से टटोल कर बिस्तर के पास बने पंखे का स्विच ऑन किया..अंदाज़ से पानी का ग्लास उठाया साइड टेबल से, गटगट करके एक घूंँट में सारा ग्लास खाली कर दिया।  होश आया तो ध्यान गया, तुम? तुम कहांँ हो? अंधेरे में हाथ से टटोला बगल में पर सब खाली... कहांँ गए? छटपटाहट में हाथ मारने लगी चादर तकिए पर बदहवासी में लाइट ऑन की खट! उफ़्फ चीर गई रोशनी आंँखों को! पर उसे भूल, फिर पलट तुम्हें ढूंँढने लगी तुम्हारी सोने वाली साइड पर... पर ...तुम नहीं हो, तुम इस बिस्तर पर नहीं हो, तुम कहीं नहीं हो..पर फ़िर भी सब जगह तो बिखरे हुए हो पूरे घर में। कुछ उमड़ने घुमड़ने लगा हृदय में शायद रुलाई सी। ना ना रोना नहीं है! तुमको पसंद नहीं है बिल्कुल, मेरी आंँख में आंँसू। पर ये कसमसाहट हृदय की शांत नहीं हो रही, हांँ तुम्हारी आवाज़ सुननी है...मोबाइल उठाकर लैंडलाइन पर फोन लगाया, ट्रिन ट्रिन रात के सन्नाटे में गूंँज गई आवाज़ ख़ाली घर में। पांँच घंटीयों के बाद तुम्हारी आवाज़ "हेलो दिस इज़ करन हेयर, प्लीज़ लीव योर मेसेज आफ्टर द बीप", सिरहन हो गई पूरे शरीर में दर्द की लहर दौड़ गई सीने से गले तक। ठंड लगने लगी। री-डायल में नंबर लगा फोन कान से सटा, रजाई को सीने तक खींच, दुबक गई अपने अकेलेपन के साथ और सामने मेज़ पर रखे तुम्हारे हेलमेट को घूरने लगी, जिसे उसदिन हर रोज़ जैसा पीछे-पीछे दौड़कर देना भूल गई थी और फिर एक फोन लाश पहचानने के लिए...
बिना किसी आहट के आंँसूओं की बूंँदें आंँखों के दोनों कोरों से ढुलक तकिया गीला करने लगी, अब हेलमेट मुझे घूर रहा था...
गला तड़क रहा था प्यास से, मानो मौत से बस चंद दूरी का फासला, बैचेनी की पराकाष्ठा इस मुकाम पर थी कि बस एक नन्ही सी बूंँद भी पानी की कोई डाल दे तो कंठ तर हो जाए और फिर कोई भय ना हो, 
मृत्यु का भी नहीं..
(full in caption) गला तड़क रहा था प्यास से, मानो मौत से बस चंद दूरी का फासला, बैचेनी की पराकाष्ठा इस मुकाम पर थी कि बस एक नन्ही सी बूंँद भी पानी की कोई डाल दे तो कंठ तर हो जाए फिर कोई भय ना हो, मृत्यु का भी नहीं, घबराहट से एकाएक नींद झटके से खुल गई! सपना था, पर प्यास सच थी, पूरा कुर्ता पसीने से भीग पीठ से चिपक गया था। दिसंबर की सर्दी में इतना पसीना। अंधेरे में हाथ से टटोल कर बिस्तर के पास बने पंखे का स्विच ऑन किया..अंदाज़ से पानी का ग्लास उठाया साइड टेबल से, गटगट करके एक घूंँट में सारा ग्लास खाली कर दिया।  होश आया तो ध्यान गया, तुम? तुम कहांँ हो? अंधेरे में हाथ से टटोला बगल में पर सब खाली... कहांँ गए? छटपटाहट में हाथ मारने लगी चादर तकिए पर बदहवासी में लाइट ऑन की खट! उफ़्फ चीर गई रोशनी आंँखों को! पर उसे भूल, फिर पलट तुम्हें ढूंँढने लगी तुम्हारी सोने वाली साइड पर... पर ...तुम नहीं हो, तुम इस बिस्तर पर नहीं हो, तुम कहीं नहीं हो..पर फ़िर भी सब जगह तो बिखरे हुए हो पूरे घर में। कुछ उमड़ने घुमड़ने लगा हृदय में शायद रुलाई सी। ना ना रोना नहीं है! तुमको पसंद नहीं है बिल्कुल, मेरी आंँख में आंँसू। पर ये कसमसाहट हृदय की शांत नहीं हो रही, हांँ तुम्हारी आवाज़ सुननी है...मोबाइल उठाकर लैंडलाइन पर फोन लगाया, ट्रिन ट्रिन रात के सन्नाटे में गूंँज गई आवाज़ ख़ाली घर में। पांँच घंटीयों के बाद तुम्हारी आवाज़ "हेलो दिस इज़ करन हेयर, प्लीज़ लीव योर मेसेज आफ्टर द बीप", सिरहन हो गई पूरे शरीर में दर्द की लहर दौड़ गई सीने से गले तक। ठंड लगने लगी। री-डायल में नंबर लगा फोन कान से सटा, रजाई को सीने तक खींच, दुबक गई अपने अकेलेपन के साथ और सामने मेज़ पर रखे तुम्हारे हेलमेट को घूरने लगी, जिसे उसदिन हर रोज़ जैसा पीछे-पीछे दौड़कर देना भूल गई थी और फिर एक फोन लाश पहचानने के लिए...
बिना किसी आहट के आंँसूओं की बूंँदें आंँखों के दोनों कोरों से ढुलक तकिया गीला करने लगी, अब हेलमेट मुझे घूर रहा था...