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लिये फिरती है............ क़ौम जो जज़बा-ए-बेदार लि

लिये फिरती है............
क़ौम जो जज़बा-ए-बेदार लिये फिरती है
हर सितम पर लबे इन्कार लिये फिरती है
अबतो आकर रुखे ज़ोबार दिखादे जानां
ज़िन्दगी ख्वाहिशे दीदार लिये फिरती है
बिन बियाही हुयी मुफ्लिस की अभागन बेटी
आंख में ख्वाब का संसार लिये फिरती है
जिसकी परवाह कभी तूने नहीं की जानां
दर्द को उसके क्यूं बेकार लिये फिरती है
इसकी बर्बादी का इक खास सबब ये भी है
क़ौम अग़यार का किरदार लिये फिरती है
ओड़ कर फाम लिबास एक तमन्ना मेरी
दर बदर सोग का तहवार लिये फिरती है
कैसे कहलायेगी मां ऐसी कनीज़े ज़हरा
बेटी बेपर्दा जो बाज़ार लिये फिरती है
पारसायी उसे छूकर कभी गुज़री ही नहीं
यार जो साथ में दो चार लिये फिरती है
सच को सच मेंने कहा था कभी "नाज़िम" अब तक
पीछे दुनिया मिरे तलवार लिये फिरती है
नाज़िम मुरादाबादी✍︎

©DrNAZIM AHMAD SHAH #लिये_फिरती_है
लिये फिरती है............
क़ौम जो जज़बा-ए-बेदार लिये फिरती है
हर सितम पर लबे इन्कार लिये फिरती है
अबतो आकर रुखे ज़ोबार दिखादे जानां
ज़िन्दगी ख्वाहिशे दीदार लिये फिरती है
बिन बियाही हुयी मुफ्लिस की अभागन बेटी
आंख में ख्वाब का संसार लिये फिरती है
जिसकी परवाह कभी तूने नहीं की जानां
दर्द को उसके क्यूं बेकार लिये फिरती है
इसकी बर्बादी का इक खास सबब ये भी है
क़ौम अग़यार का किरदार लिये फिरती है
ओड़ कर फाम लिबास एक तमन्ना मेरी
दर बदर सोग का तहवार लिये फिरती है
कैसे कहलायेगी मां ऐसी कनीज़े ज़हरा
बेटी बेपर्दा जो बाज़ार लिये फिरती है
पारसायी उसे छूकर कभी गुज़री ही नहीं
यार जो साथ में दो चार लिये फिरती है
सच को सच मेंने कहा था कभी "नाज़िम" अब तक
पीछे दुनिया मिरे तलवार लिये फिरती है
नाज़िम मुरादाबादी✍︎

©DrNAZIM AHMAD SHAH #लिये_फिरती_है