बचपन में ये साहबजादे घर के लाडले होते हैं पिता के कंधों पर बैठकर दुनिया देखते हैं माँ से सीखते हैं जिंदगी जीने के सलीके मर्द कुछ ऐसे ही होते हैं। समय बढ़ते ही आती कंधों पर इनके जिम्मेदारी छूट जाती है मस्ती वो संग दोस्तों के आवारी जीवन पथ पर बढ़ते समझदारी भर लेते हैं मर्द कुछ ऐसे ही होते हैं। कलेजे तक जिसके चोट हो, दर्द असहनीय चुप सहते हैं आँखें नम न कोई देख ले, मन में घुट कर ही रोते हैं तुम अक्सर ही देखते होगे इनको मुस्कुराते... हाँ! मर्द कुछ ऐसे ही होते हैं। ©Krishna Mishra #InternationalMensDay2020 #poetMKrishna ❤️ #Male 💪