मन के खिड़कियों से आपने कभी दिल की गली में झांक कर देखा है । देखने के बाद पता चलेगा कैसे खुद को दफन करके इसने अपने गली को आबाद बना रखा है। वहां इश्क का इक घर है जहां देखा है मैंने आह्लादित उस घर के सभी सदस्यों को , वहीं से थोड़ी दूर पर है बेवफाई की टूटी एक फूस की झोपड़ी है जिसमें जिजीविषा अभी भी जिंदा है इश्क को मुकम्मल करने की । उसी गली में एक आंसुओं की नाली भी बहती है जहां सब के आंसू एक साथ उसी नाले से बहता है। पाया मैंने इस गली के लोग भले ही वर्गों में विभक्त हो मगर जब आंसुओं की बारी आती है सब एक ही नाली से बहते हैं । वस्तुतः दुखों की समानता सभी जगह एक जैसी ही मालूम पड़ती है शायद!