|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8
।।श्री हरिः।।
6 – पूर्णकाम
‘तृष्णाक्षये स्वर्गपदं किमस्ति'
'देवाधिप की मुखश्री आज म्लान दीखती है!' सुरगुरु ने अमरों की अर्चा स्वीकार कर ली थी और महेन्द्र से अभिवादित होकर वे सिंहासन पर बैठ चुके थे। इन्द्र एवं अन्य देवताओं ने भी आसन ग्रहण कर लिया था। 'सुधर्मा सभा में आज चिन्ता की अरुचिकर गन्ध है।'