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बंजर का इक बबूल हूं, करता न कोई प्यार पहना दिया

 बंजर का इक बबूल हूं, करता न कोई प्यार
  पहना दिया है रब ने क्यों कांटों का मुझको हार

       कहते हैं लोग मुझको मैं किसी काम का नहीं
       जड़ से ही काट देते हैं ,देते हैं मुझको मार

  पत्थर पर भी उग जाता हूं ,पानी नहीं जहां
  मेरे गुलों से  जाने क्यों आती नहीं बहार 

       कोई पथिक ना बैठता डरता है छांव से
       सुनता नहीं है कोई भी दिल की मेरे पुकार

  हर कोई मेरी और है नफरत से देखता 
   बेखुद ये देख दिल मेरा दुखता है बार-बार

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
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