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"प्रकृति दुल्हन बनने लगी... खिलकर वो कली,धरती माँ

"प्रकृति दुल्हन बनने लगी...

खिलकर वो कली,धरती माँ के आँचल से जगने लगी,
पहनकर पीले वस्त्र,अब ये प्रकृति दुल्हन बनने लगी,

  पीले-पीले फूलों का वेश बनाकर,
  पीताम्बर का सा श्रृंगार लगाकर,
 राधिका गोरी की तरह सजने लगी,
पहनकर पीले वस्त्र,अब ये प्रकृति दुल्हन बनने लगी,

जिसने पीले वस्त्र पहनाया,वो किसान का बेटा था,
दिन रात मेहनत करके, सर्दी में कलेजा सेखा था,
कैसे ना करता ये सब,हालात ने गरबी में फेंका था,
तब जाकर प्रकृति कोे उसने,दुल्हन के रूप में देखा था,

कुछ बदलाव जानकार उसने,अमूल्य वोट भी खोया,
मुख मोड़कर वो नेताजी,नोटों के बिस्तर पर सोया,
क्या जवाब दूंगा अब मेरे, कर्ज के जमीदारो को,
ये सोच-सोच कर वो किसान,फुट फुट कर रोया,

सब हालात देखकर,उसकी रूठी किस्मत हँसने लगी,
पहनकर पीले वस्त्र,अब ये प्रकृति दुल्हन बनने लगी,

                              : गजेन्द्र प्रसाद सैनी
                                   Shiv college... "प्रकृति दुल्हन बनने लगी।
"प्रकृति दुल्हन बनने लगी...

खिलकर वो कली,धरती माँ के आँचल से जगने लगी,
पहनकर पीले वस्त्र,अब ये प्रकृति दुल्हन बनने लगी,

  पीले-पीले फूलों का वेश बनाकर,
  पीताम्बर का सा श्रृंगार लगाकर,
 राधिका गोरी की तरह सजने लगी,
पहनकर पीले वस्त्र,अब ये प्रकृति दुल्हन बनने लगी,

जिसने पीले वस्त्र पहनाया,वो किसान का बेटा था,
दिन रात मेहनत करके, सर्दी में कलेजा सेखा था,
कैसे ना करता ये सब,हालात ने गरबी में फेंका था,
तब जाकर प्रकृति कोे उसने,दुल्हन के रूप में देखा था,

कुछ बदलाव जानकार उसने,अमूल्य वोट भी खोया,
मुख मोड़कर वो नेताजी,नोटों के बिस्तर पर सोया,
क्या जवाब दूंगा अब मेरे, कर्ज के जमीदारो को,
ये सोच-सोच कर वो किसान,फुट फुट कर रोया,

सब हालात देखकर,उसकी रूठी किस्मत हँसने लगी,
पहनकर पीले वस्त्र,अब ये प्रकृति दुल्हन बनने लगी,

                              : गजेन्द्र प्रसाद सैनी
                                   Shiv college... "प्रकृति दुल्हन बनने लगी।