मयखानों में दिल हम भी बहलाने लगे हैं, जाम मोहब्बत का छलकाने लगे हैं! कौन कहता हैं बर्बाद हूं मैं, अपनी बरबादी पे हम मुस्कुराने लगें हैं! कहते हैं सब बेरहम हूं मैं, उन्हें क्या पता, ज़ख्म-ए-दर्द सिने में दफनाने लगे हैं! दर्द देने लगी थी, जालिम-ए-मोहब्बत तो, नाम उनका सिने से मिटाने लगे हैं! ख्याल नहीं अब किसी का हमें, नशीली निगाहों में उनकी, दुनियां भुलाने लगे हैं! ना हुआ अब तक दीदार उनका, इंतज़ार में हम मौत को गले लगाने लगे हैं! #इंतिजार #में