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इनकी रफ्तार से मैं चल नहीं सकता इतनी तबीयत से खुद

इनकी रफ्तार से मैं चल नहीं सकता 
इतनी तबीयत से खुद को बदल नहीं सकता 
नदिया भी सूखने में वक्त लेती है 
ये किन लोगों का हुजूम है 'इलाही'
जो मुकरने में वक्त भी नहीं लेता ।

इनसे उम्मीदों का समुद्र पाले बैठे है लोग 
ओर ये एक बूँद भी नहीं दे सकता 
मतलबी सा आसमां है इनका 
जो किसी को धूप दे नहीं सकता 
इनकी रफ्तार से मैं चल नहीं सकता 
इतनी तबीयत से खुद को बदल नहीं सकता 

क्या बताऊँ मय्यत पर लेटा हूँ अभी तक (अर्थी)
मैं खुद को ही उठाकर ले जाता हूँ रोज़ शमशान तक
किस शै की तमन्ना पाले बैठे है ये लोग (चीज़)
असली शै को भूल बैठे है ये लोग 

अब हमारे सलीक़े में इन की तहज़ीब न आ जायें (व्यवहार) (संस्कृति)
चलो अपनी जम़ी अलग करते है 
खुद के नशेमन में रहकर ही (घोंसला)
कोई कार-ए-सवाब करते है ।। (पुण्य का काम)

©Anurag Kumar #LifeOfPolitics 

#simplicity
इनकी रफ्तार से मैं चल नहीं सकता 
इतनी तबीयत से खुद को बदल नहीं सकता 
नदिया भी सूखने में वक्त लेती है 
ये किन लोगों का हुजूम है 'इलाही'
जो मुकरने में वक्त भी नहीं लेता ।

इनसे उम्मीदों का समुद्र पाले बैठे है लोग 
ओर ये एक बूँद भी नहीं दे सकता 
मतलबी सा आसमां है इनका 
जो किसी को धूप दे नहीं सकता 
इनकी रफ्तार से मैं चल नहीं सकता 
इतनी तबीयत से खुद को बदल नहीं सकता 

क्या बताऊँ मय्यत पर लेटा हूँ अभी तक (अर्थी)
मैं खुद को ही उठाकर ले जाता हूँ रोज़ शमशान तक
किस शै की तमन्ना पाले बैठे है ये लोग (चीज़)
असली शै को भूल बैठे है ये लोग 

अब हमारे सलीक़े में इन की तहज़ीब न आ जायें (व्यवहार) (संस्कृति)
चलो अपनी जम़ी अलग करते है 
खुद के नशेमन में रहकर ही (घोंसला)
कोई कार-ए-सवाब करते है ।। (पुण्य का काम)

©Anurag Kumar #LifeOfPolitics 

#simplicity