इक आस शेष थी बस इस उम्मीद में रात का सवेरा होगा प्रयास अथक होते रहे बस उदेश्य नेक था.. थोड़ा झुक निकल आए अच्छा ही है वैसे भी अकड़ तो मुर्दों में होती है.. जिन्दा को लचीला ही देखा है... चिंतित होने का ना कारण है.. चोट खरोंच या दर्द उन्हीं को होगा जो मैदान में आयेगा.. नर हो नारी हो.. घर ये दूसरे का है तो नियम भी उसके ही होंगे बस यही समझने की जरुरत है... बेजान सा क्यो हैं..? क्यो शोर हैं, चारो तरफ औऱ ये दिल.. क़ब्रिस्तान सा क्यो हैं जज्बात क्यो लड़ कर कत्ल करते हैं एकदूसरे का.. ख्वाइशें कुछ बिखर सी जाती हैं