कुछ हल्की धूप सा खिला खिला, वो मासूम आया था मन में कुछ अरमान लिए, घर बार छोड़ आया था पालक कभी न खाने वाला लड़का, पालक अब खा रहा था घर की याद आ रही थी, मगर अश्कों को दबा रहा था एक अनजान शहर में कुछ तो बदलने जा रहा था था एक मां का लाडला जो बड़ा होने जा रहा था कहने को यहां शब्द बहुत सारे थे, मगर बात कुछ ऐसी थी जो शायद बातों से आगे थे बहुत भीड़ थी वहाँ उन लोगों की जो वही ख्वाब लिए बैठे थे ऊपर से ये जुनून मार्क्स के, उसको डराएं बैठे थे ये भारी दौड़ देखकर वो मासूम डर जाता था क्रिकेट खेलने वाला लड़का अब किताबों में नजर आता था रातों की गुमनामी में, एक शोर गूंजने जा रहा था था एक मां का लाडला ,जो बड़ा होने जा रहा था पापा की उम्मीदें बहुत थी, वो हर जंग जीतना चाहता था मां की ममता वो का हर ख़्वाब जीना चाहता था कहने को तो इम्तिहान था, पर खुद से ही वो हार गया छीन कर ख़ुद की जिन्दगी वो, उस दौड़ से बाहर गया आज वो अनजान शहर फिर से रोने जा रहा था था एक मां का लाडला जो बड़ा होने जा रहा था #stopsucide#livewithlife