नुमाइश से अक़्सर इश्क़ को नज़र लगती है, होता है बुरा, जो ज़माने को ख़बर लगती है।। ख़ुशी से ज़्यादा दर्द आकर ठहरता है दिल में, हर बात भी फ़िर एक ज़ख़्मी शहर लगती है।। छोटी-छोटी बातों से जो बड़ा सुकून मिलता है, न मिले ग़र रोज़, फ़िर इश्क़ में कसर लगती है।। फ़िक्र-ज़िक्र रहते वही, बदलते तो ये हालात हैं, शक़ और हक़ की रीत भी फ़िर ज़बर लगती है।। नुमाइश से अक़्सर इश्क़ को नज़र लगती है, होता है बुरा, जो ज़माने को ख़बर लगती है।। रमज़ान सातवाँ दिन #रमज़ान_कोराकाग़ज़