दब-दब कर दूब सी हो गई है जिंदगी। बलवान देवों के चरण चढ़ कर भी, धरातल का दामन पकड़ कर भी, मजबूर हो निर्बल पड़ी हुई है जिंदगी। दूब है न! वट जैसी इच्छाशक्ति नहीं है उसमें। क्योंकि, धरा चीर कर उठ खड़ी हो , ऐसी शक्ति कहाँ है उसमें। दूब है न! मौन रह कर न जाने कब से, अत्याचार सह रही है। अपने अस्तित्व पर सवाल कर रही है विष नित्य पी कर स्वयं का संहार कर रही है पशुओं का अक्सर आहार बन रही है। दूब है दूसरों के पैरों की ठोकर खा, दब जाती है । इसलिए क्योंकि दूब है न!......? #nojoto #kavita #life #lifelesson