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// ज़िन्दगी की पहेली // हम ज़िन्दगी की तरफ

// ज़िन्दगी की पहेली //

हम ज़िन्दगी की तरफ
             वापस  लौट  रहे थे ,
ऐसा लग रहा था जैसे
            बरसो की पड़ी ज़मीन
पर बर्फ पिघल रही हो।

वो सारे एहसास, वो सारे
          आरज़ू ,जो इस सब के
नीचे कहीं दब गई थी ,
          वो सारे के सारे फ़िर से
सर उठाने लगी थीं ।

तभी ज़िन्दगी जीने के
          लिए सब था मेरे पास ,
और ज़िन्दगी गुजारने
          के  लिए , मेरे  लिए
ये उम्मीद काफ़ी थी..।               - सुचिता पाण्डेय✍
 // ज़िन्दगी की पहेली //

हम ज़िन्दगी की तरफ
             वापस  लौट  रहे थे ,
ऐसा लग रहा था जैसे
            बरसो की पड़ी ज़मीन
पर बर्फ पिघल रही हो।
// ज़िन्दगी की पहेली //

हम ज़िन्दगी की तरफ
             वापस  लौट  रहे थे ,
ऐसा लग रहा था जैसे
            बरसो की पड़ी ज़मीन
पर बर्फ पिघल रही हो।

वो सारे एहसास, वो सारे
          आरज़ू ,जो इस सब के
नीचे कहीं दब गई थी ,
          वो सारे के सारे फ़िर से
सर उठाने लगी थीं ।

तभी ज़िन्दगी जीने के
          लिए सब था मेरे पास ,
और ज़िन्दगी गुजारने
          के  लिए , मेरे  लिए
ये उम्मीद काफ़ी थी..।               - सुचिता पाण्डेय✍
 // ज़िन्दगी की पहेली //

हम ज़िन्दगी की तरफ
             वापस  लौट  रहे थे ,
ऐसा लग रहा था जैसे
            बरसो की पड़ी ज़मीन
पर बर्फ पिघल रही हो।