अब विदा लेता हूँ मेरी दोस्त! मैं अब विदा लेता हूँ! मैंने एक कविता लिखनी चाही थी सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं, उस कविता में महकते हुए धनिए का ज़िक्र होना था! ईख की सरसराहट का ज़िक्र होना था! उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस और बाल्टी में दुहे दूध पर गाती झाग का ज़िक्र होना था और जो भी कुछ मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा उस सब कुछ का ज़िक्र होना था! उस कविता में मेरे हाथों की सख़्ती को मुस्कुराना था! मेरी जाँघों की मछलियों को तैरना था और मेरी छाती के बालों की नरम शॉल में से स्निग्धता की लपटें उठनी थीं उस कविता में तेरे लिए मेरे लिए और ज़िन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त! मैं अब विदा लेता हूं! ✍️अवतार सिंह सिंधु 'पाश' #पाश