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कोई इमकान का साया नज़र तो आए कहीं, धूप में ख़्वाब

कोई इमकान का साया नज़र तो आए कहीं,

धूप में ख़्वाबों के तलवे झुलस रहे हैं बहुत;

Poet:: Dr. Taseer Siddiqui unemployed youths
कोई इमकान का साया नज़र तो आए कहीं,

धूप में ख़्वाबों के तलवे झुलस रहे हैं बहुत;

Poet:: Dr. Taseer Siddiqui unemployed youths