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White मन के वशीभूत होती जा रही हूँ, दिशाहीन सी मै

White मन के वशीभूत होती जा रही हूँ,

दिशाहीन सी मैं किस और चली जा रही हूंँ।

जो अपना है वो भी अपना नहीं लगता,

असुरक्षा का भाव क्यूँ अपनाती जा रही हूँ?


क्या मेरा मन  ही मेरा दुश्मन हो चला है,

हांँ भ्रांतियों को नित्त स्वीकारती जा रही हूंँ।

बहुत कुछ जान कर भी

बहुत कुछ से अंजान हूँ,

ये कैसी अवस्था तक

कदम बढ़ा रही हूंँ?


स्वे चिंतन कम है

मन में शोर बहुत है,

अध्यात्म का रस पीने को

तरसी जा रही हू।

खु़द को ख़ुद ही रोके हुए हूँ,

क्यूँअपनी शत्रु बनी जा रही हूँ?


मन के आते जाते भावो को,

शब्दों का रूप दिए जा रही हूंँ,

नमी दानम(कुछ ना पता होने की दशा)के में ख़ुद नहीं जानती,
 किस और से निकल कर किस और जा रही हूंँ

©Haniya Kaur khiza
  #shayari #Feeling #mind
Mann ke bhaav

#Shayari #Feeling #Mind Mann ke bhaav

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