दिलों के तार मैंने चाहा था , दिल मेरा भी खुशनुमा रहे हरदम। मिले ऐसा कोई , जो साथ खड़े रहे हर कदम। मिली एक गौरैया जो , चहकती थी बहकती थी अपने अभिमान से। फुदकती थी , मेरे दिल की इन गलियों में बिल्कुल शान से। पर इस मतलबी दुनियां का असर उस पर भी हो गया। जरूरत पूरी हुयी उसकी और उसका आशियाना बदल गया। छोड़ गयी मुझे तन्हा अकेले इन गलियों में । बस अब यादें ही बची ही उसकी मुझमें। मैंने भी चाहा था