मीठी सी थी, मगर लगने लगी अब जहर जिंदगी, बन चुकी हैं मेरे लिए अब कहर जिंदगी, यूं तो दिन बीत रहे,रातें गुजरे जा रही जैसे तैसे, पर लगता गयी है कहीं अब ठहर जिंदगी, गांव की भोली भाली ना समझ सी थी, जिसे बहला फुसलाकर लूट ले गया तेरा शहर जिंदगी, पंख कुतर दिये, पांव तोङे और काट डाली जुबान भी, बोल दिया कि रहो तङफती अब हर पहर जिंदगी, सहारा ढूंढ़ती-ढूंढती आखिर बिखर गयी , जैसे टकराकर बिखर जाये पानी की लहर जिंदगी,, #जिन्दगी #गमगीन #बेसहारा #जहर