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** रूठे रूठे लफ्ज़ ** लिखने बैठे हम गज़ल, जब उनके ना

** रूठे रूठे लफ्ज़ **
लिखने बैठे हम गज़ल, जब उनके नाम की,
रूठे लफ़्ज़ों से हमनें तब ,मिन्नते तमाम की,

रूठे रूठे लफ़्ज़ , मगर  मेरा साथ न दे पाए,
क़लम के समझाने की भी ,कोशिशें नाकाम थी,

कैसे  लिखें  एक नज़्म , जो उन्हें रिझा पाए,
लिखुँ एक ग़ज़ल कैसे ,  इश्क़-ए-पौगाम की,

मान  मनुहार  कर ,जब लफ़्ज़ों को मनाया किये,
मग़र उन रूठे लफ़्ज़ों को,ख़्वाहिश थी ईनाम की,

देकर एक जादू की झप्पी ,जब लफ़्ज़ों को मनाया ,
रची एक मदहोश ग़ज़ल, तब इश्क़-ए-जाम की।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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