बुनियाद... जग से, शिकायत क्या करूँ मेरा दर्द, जग जाहिर कब है... बस इक तू, महसूस कर मुझे मुझे इस जग की जरुरत कब है... इश्क़ कहलो जूनून,, इबादत कहलो जब तू, ही बेखबर हो, तो बेबुनियाद सब है... मेरी बुनियाद में तू खड़ा था... मैं बे फ़िक्र ऊँचा बढ़ता चला गया... तू ढाल बन पीछे खड़ा था... मैं बेख़ौफ़ हर जंग लड़ता चला गया... इतिहास गवाह है और हमेशा रहेगा बिना बुनियाद कोई मकां टिका कब है... टूट कर टुकड़ो में बिखरा था शीशे की तरह सच ये भी है टूट कर शीशा जुड़ा कब है... जग जाहिर अब ये होगा कि मैं ढह गया हूँ बुलबुला पानी का देर तक रुका कब है... ज़िन्दगी के भरोसे तेरी तमन्ना लिए बैठा था मौत की ग़ुलाम है ये इसका भरोसा कब है... Tek●●● मैं_तू●●● #नया #टेकचंद_हटके #firstquote कहकर भी बहुत कुछ अनकहा रह ही जाता है इसलिए #कुछअनकहा