जितने हमने हाथ थामे उतने पीठ पीछे घाव मिले| जितने हमने एहसान किए उतने हमें आस्तीन के सांप मिले| ए कलियुगी दुनिया तेरे दस्तूर से हम कितने अनजान थे, जितने हमने फूल बांटे उतने कांटे मिले| लोग इस खेल में कितने माहिर और हम कितने अनाड़ी, जितने हमने रहम किए उतने हमें इल्जाम मिले| वो रंग बदलते हैं ज़रुरत के हिसाब से, चेहरे रखते हैं मौकों के हिसाब से, जितने हम कश्ती बने उतने हमे छेद मिले| Composed by Self Hindi Shayari