आर वी चित्रांगद के कलम से चींटा की मिस चींटी के संग,जिस दिन हुई सगाई। चींटीजी के आंगन में थी,गूंज उठी शहनाई। घोड़े पर बैठे चींटाजी, बनकर दूल्हे राजा। आगे चलतीं लाल चींटियां,बजा रहीं थीं बाजा। दीमक की टोली थी संग में,फूंक रहीं रमतूला। खटमल भाई नाच रहे थे,मटका-मटका कूल्हा। दुरकुचियों का दल था मद में,मस्ताता जाता था। पैर थिरकते थे ढोलक पर,अंग-अंग गाता था। घमरे, इल्ली और केंचुएं,थे कतार में पीछे। मद में थे संगीत मधुर के,चलते आंखें मींचे। जैसे ही चींटी सजधज कर,ले वरमाला आई। दूल्हे चींटे ने दहेज में,महंगी कार मंगाई। यह सुनकर चींटी के दादा,गुस्से में चिल्लाए। 'शरम न आई जो दहेज में,कार मांगने आए। धन दहेज की मांग हुआ,करती है इंसानों में। हम जीवों को तो यह विष-सी,चुभती है कानों में।' मिस चींटी बोली चींटा से,'लोभी हो तुम धन के। नहीं ब्याह सकती मैं तुमको,कभी नहीं तन-मन से। सभी बाराती बंधु-बांधवों,को वापिस ले जाओ। इंसानों के किसी वंश में,अपना ब्याह रचाओ चींटा की मिस चींटी के संग, जिस दिन हुई सगाई। चींटीजी के आंगन में थी, गूंज उठी शहनाई। घोड़े पर बैठे चींटाजी, बनकर दूल्हे राजा। आगे चलतीं लाल चींटियां,