गुनगुने , हल्के ख़ुशी के पलों का रंग फ़ीका होता है । वे रंग नहीं पाते अंतस की भारी दीवारों को । पीड़ाओं के पल गहरे रंग लिये , तीक्ष्ण ताप के होते हैं । दो लोग बंधे हुए किसी पीड़ा से , एक साथ दुखाग्नि में पिघलते हैं और बची नहीं रहती उनकी मेढ़। वे दो ढहे हुए मकानों से हो जाते हैं , जिनकी ईंटें एक दूसरे की परिधि में गिरी मिलती हैं- पहचान करना असंभव होता है कि कौन सी ईंट किस मकान की थी । सुखों की डोर रेशम से बनी होती है , कब हाथ से फिसल जाये आभास नहीं होता ... वे दुख ही हैं जो जानते हैं कठोरता से बाँधे रखना। प्रेम भी कोमल कहाँ !! प्रेम की तासीर कठोर है । वे दुख ही हैं जिनमें प्रेम साँसें लेता है । मीनाक्षी ©Meenakshi #सृजनात्मा #srijanaatma