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लफ्ज तो तुम ही थे ज़नाब, मैं तो केवल जरिया थीं। तुम

लफ्ज तो तुम ही थे ज़नाब, मैं तो केवल जरिया थीं।
तुम थे छितिज-आकाश, मैं तो केवल दरिया थीं।
पता था हकिकत मुझे भी ,की तुम साहिल हो बदल जाओगे
पर मैं तो मशुमियत में खोयी तेरे लिए बनी बावरिया थीं। लफ्ज तो तुम ही थे ज़नाब, मैं तो केवल जरिया थीं।
तुम थे छितिज-आकाश, मैं तो केवल दरिया थीं।
पता था हकिकत मुझे भी ,की तुम साहिल हो बदल जाओगे
पर मैं तो माशुमियत में खोयी तेरे लिए बनी बावरिया थीं।

अक्सर लोंग मुझे खामखाँ ही समझाते थे,
तेरे लिये रुकने पर डाँट भी लगाते थे।
पर बनी मैं बन बैठी थी मीरा ,
लफ्ज तो तुम ही थे ज़नाब, मैं तो केवल जरिया थीं।
तुम थे छितिज-आकाश, मैं तो केवल दरिया थीं।
पता था हकिकत मुझे भी ,की तुम साहिल हो बदल जाओगे
पर मैं तो मशुमियत में खोयी तेरे लिए बनी बावरिया थीं। लफ्ज तो तुम ही थे ज़नाब, मैं तो केवल जरिया थीं।
तुम थे छितिज-आकाश, मैं तो केवल दरिया थीं।
पता था हकिकत मुझे भी ,की तुम साहिल हो बदल जाओगे
पर मैं तो माशुमियत में खोयी तेरे लिए बनी बावरिया थीं।

अक्सर लोंग मुझे खामखाँ ही समझाते थे,
तेरे लिये रुकने पर डाँट भी लगाते थे।
पर बनी मैं बन बैठी थी मीरा ,
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