|| श्री हरि: ||
2 -उलझन में
राम श्याम दोनों आकर द्वार के बाहर खड़े ही हुए थे कि एक तितली कहीं से उड़ती आयी और दाऊ की अलकों पर बैठ गयी। कन्हाई यह कैसे सहन करले कि यह क्षुद्र प्राणी उसके अग्रज के सिर पर ही बैठे; किन्तु तितली को हटाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह अलकों से उड़ कर इसके दाहिने हाथ की नन्हीं मध्यमा अँगुली पर ही आ बैठी। इतनी सुकुमार, इतनी अरुण अँगुली - तितली को बैठने के लिए इससे अधिक मृदुल, सुन्दर सुरभित कुसुम भला कहाँ मिलने वाला है।
अब श्याम उलझन में पड़ गया है। यह अपनी अँगुली पर बैठी इस छोटी पीली तितली का क्या करे? बडे भाई की ओर हाथ बढाकर दिखलाता है कि दादा इसे भगा दे यहाँ से।
दाऊ का काम - इनका स्वभाव तो श्याम के समीप से प्राणियों को भगाना नहीं है। ये तो अपने छोटे भाई तक प्राणियों को पहुँचाने वाले हैं। तितली को भगाना तो दूर रहा, अनुज की अंगुली पर बैठा यह नन्हा प्राणी उन्हें बहुत प्रिय लगा है। ये तो ताली बजाकर सिर हिलाकर हंसने लगे हैं। #Books