आठों पहर रुत चाहे हो सर्दी गर्मी या बरखा रे। कश्तियों का जमघट सदा रहता गँगा के धारे।। भोर का उजियारा हो या ढलती शाम के नज़ारे। पँछी भी चहके तो लगे जैसे हर हर गंगे पुकारे।। धूप दीप नैवेद्य से सुंगधित वातावरण दृश्य विहंगम। गूँजें मैया के जयकारे भक्ति मुक्ति का अनूठा संगम।। घाट मणिकर्णिका हो या अस्सी एक से ही नज़ारे। पाप धोने आए सैलानियों से भरे रहते घाट किनारे।। लोग समझते हैं इसे सारे पापों से मुक्ति का आधार। गंगा नहा लिए तो समझो खुल जाएगा स्वर्ग का द्वार।। गंगा मैली कर दी इतना किया मिलकर सबने दुर्व्यवहार। कहीं अस्तित्व ही ना खो दे हमारी आस्था का आधार।। ♥️ Challenge-675 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।