दिल की जमीन में उकेरा एक नाम फिर उभर ना पाया कोई दूजा नाम कोई पूछे उदासी का सबब तो हाले दिल सुना देते हैं तेरा नाम होठों पर लाते लाते चुप हो जाया करते हैं,,,,,,, नहीं परवाह तुझे,,तो रह अपनी महफिल में जवां,, हाल ए दिल सुनाने के लिए हर वक्त रहता खुदा मेरा,,,,, तू मगरूर है इस इस वजह से कि वफ़ा तुझसे की जमाना छोड़ कर हमने,,,,,,