काम ज़रूरी था जो करना भूल गए आंखों में हम पानी भरना भूल गए फल की लालच में हम चढ़ तो गए मगर पेड़ से नीचे यार उतरना भूल गए एक परिन्दा तोड़के पिंजरा निकल गया यानी उसके पंख कतरना भूल गए दुनिया भर में ज़ुल्म मुसलसल जारी है इस दरजा दहशत है डरना भूल गए तुम जो क़त्ल-ओ-ग़ारत करते फिरते हो तुमको भी है इक दिन मरना,भूल गए मुझमें भी अब पहले जैसी बात कहां वो भी सजना और संवरना भूल गए उनकी याद में इस दरजा मशगूल हुए नाव में थे औ'र पार उतरना भूल गए। #गज़ल