पूछू माँ! तुझसे एक सवाल..झूठी वो बातें थी याँ तूँ झूठी थी? दिखायी थी वो सच्चाई की राह...क्या वो झूठी थी, कैसे चलूँ माँ! इस राह पर.. कदम-कदम पर धोखा, ईर्ष्या,निंदा कंटक बिखरे है। पूछू माँ! तुझसे एक सवाल... झूठी वो बातें थी याँ तूँ झूठी थी? करो सबका सम्मान!...मदद करना सबकी!... कैसे करूँ माँ उनका सम्मान... जिनका मन ही नीच हो... मिलें जहाँ ठोकरें...खुद ही आदर्श का नाश हो... कैसे करूँ माँ! उनकी मदद जो मेरी मंजिल की रूकावट हो... पूछू माँ! तुझसे एक सवाल...झूठी वो बातें थी याँ तूँ झूठी थी? बनकर रहना सहनशीलता की मूर्ति...बडे से न करना बातें उंची... कितना सहे माँ! जान तो हमारी भी है.. होती है माँ!मुझे भी तकलीफ.. इस तन में मिट्टी नही लहू ही है...! चार दिवारों कें अंदर बचपन वाली वो दुनिया ही प्यारी थी... तेरे आँचल की निंदयाँ बडा सुकून देती थी... जानती हूँ माँ न तूँ झूठी थी... न तेरी बातें झूठी थी... झूठे तो यें लोग हें जो सच को झूठ कहते हैं। #एकसवाल