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नगरी नगरी फिरता रहा सफ़र में अकेले चलता रहा रातों

नगरी नगरी फिरता रहा 
सफ़र में अकेले चलता रहा
रातों को बना कर साथी
यूंही अंजान रहो पर 
चलता रहा 
कुछ नए रिश्ते बने तो
 कुछ पुराने बिछड़ते गए
अपनो को छोड़ पीछे
हम जिमेदारियो लेकर 
चलते रहा 
कही टूटी हिम्मत हमारी तो
कही पाओ में छाले पड़ते रहे
ज़िमेदारीयो इस दौड़ में 
कही हारे तो कहीं जीत भी गए
ना रुके कही क़दम हमारे
ना साथ उम्मीदों की हमने छोड़े
जिमेदारियो का ताज ले कर सिर
पे
बेपरवा हर रास्ते पर हम चलते रहे

©Baibhav Mishra
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